प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव
(केसीआर) के साथ 19 नवंबर को एक मीटिंग में कहा कि बिना सोचे समझे नोटबंदी
द्वारा 1000 और 500 के नोटो को बंद करके उन्होने एक बहुत बड़ी भूल कर दी।
नरादा की खबर के
अनुसार, चंद्रशेखर राव पीएम से नोटबंदी के बाद तेलंगाना में नए नोट ना
होने से हो रही भारी परेशानी बताने के लिए मिले थे। नोटबंदी के बाद से
तेलंगाना के हालात बहुत खराब थे जिसका असर हैदराबाद समेत पूरे राज्य पर पड़
रहा था। पुराने नोट बदलने के लिए कतारों में बहुत लोग खड़े थे जिसके बाद
से पैसा बहुत जल्दी खत्म हो रहा था।
मोदी और चंद्रशेखर के बीच मीटिंग 25 मिनट के लिए होनी तय थी। लेकिन ये
मीटिंग पूरे एक से डेढ़ घंटे के लिए चली चंद्रशेखर राव ने कहा कि औद्योगिक
और कृषि क्षेत्रों में स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हो रही थी।
चंद्रशेखर ने पीएम से तेलंगाना में इस तरह के एक अनिश्चित स्थिति को
देखते हुए कहा कि, राज्य केंद्र को करों और अन्य राजस्व के अपने हिस्से का
भुगतान करने में सक्षम नहीं होगा।
चंद्रशेखर द्वारा की गई सूचीबद्ध शिकायतों के बाद प्रधानमंत्री ने
स्वीकार किया नोटबंदी अपने आप में एक बड़ी भूल थी। और उन्हे इसे शुरू करने
से पहले बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए था। एक सूत्र ने इस मीटिंग के बारे में
बताया कि हालांकि प्रधानमंत्री ने कहा कि चीजें जल्दी ही सुधरनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने चंद्रशेखर से नोटबंदी को सार्वजनिक रूप से इस कदम का
समर्थन करने को कहा। मोदी ने चंद्रशेखर को आश्वासन दिया कि नितिन गडकरी,
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, और पीयूष गोयल, बिजली मंत्री, संकट से
उबरने में मदद करने के लिए राज्य में नई परियोजनाओं की घोषणा करेंगे।
मोदी और चंद्रशेखर राव की बैठक इतनी लंबी चली कि पीएम से मिलने का
इंतज़ार कर रहे सेना प्रमुख जनरल दलबीर सुहाग को कहा गया कि कुछ जरूरी
परिस्थितियों के कारण प्रधानमंत्री से मिलना संभव नहीं है।
ये पहला अवसर है जब मोदी ने नोटबंदी पर अपनी गलती स्वीकरा की है। वरना
प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक रूप से नोटबंदी का पूरी तरह से बचाव किया
है। इस कदम के खिलाफ विरोध करने वालों को पीएम ने भष्ट्र कहकर पुकारा है ।
इजरायल से एक शीर्ष अर्थशास्त्री, जो प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों
में है, उन्होंने मोदी से कहा था कि निर्णय काफी गलत था। कई भारत और विदेश
के विशेषज्ञों ने निर्णय की निंदा की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी घोषणा पर अभूतपूर्व कवरेज सिर्फ
भारतीय मीडिया तक ही सीमित नहीं थी। 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को
बंद करने के इस कदम का दुनिया भर की मीडिया कवरेज में बोलबाला रहा है।
टीवी चैनलों ने बड़े पैमाने पर इस खबर को कवर किया लंदन के समाचार पत्र,
न्यूयॉर्क और वाशिंगटन ने अपने संपादकीय में नोटबंदी के लिए कटु लेख लिखे
थे।
लंदन के दा गार्जियन अखबार ने इस कदम को तानाशाही का एक असफल प्रयोग बताया, ब्लूमबर्ग ने इसे मोदी की एक भारी गलती करार दिया।
यहाँ इन विदेशी मीडिया की टिप्पणियों के संपादकीय का एक स्नैपशॉट है।
लंदन दा गार्जियन
अमीर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, काला धन का अधिकतर भाग शेयर, सोना
और रियल एस्टेट के रुप में परिवर्तित कर दिया है। लेकिन गरीब, जो देश की
1.3 अरब लोगों की आबादी में हैं सबसे अधिक प्रभावित होंगे। जिनके आम तौर पर
बैंक खाते नहीं है और अक्सर नकद में भुगतान करते हैं। इस नीति के एक हफ्ते
के अंदर ही कम से कम एक दर्जन से अधिक लोगों की जान जाने का दावा किया गया
है। सरकार का कहना है कि यह समस्या को सुलझाने के लिए सप्ताह का समय
लगेगा।
श्री मोदी की योजना तानाशाही की असफल प्रयोगों के समान है जिसके परिणाम
स्वरुप मुद्रास्फीति, मुद्रा पतन और बड़े विरोध प्रदर्शन सामने आए है। श्री
मोदी जी ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ये अभियान चलाया है। लेकिन
बेहतर होता यदि सरकार ने अपने पुरानी कर प्रणाली को नवीनतम बनाया होता।
न्यूयॉर्क टाइम्स
नकदी भारत में राजा है। यहा 78 प्रतिशत लेनदेन में नकद का प्रयोग होता
है। कई लोगों के पास बैंक खाते या क्रेडिट कार्ड नही है और यहां तक कि जो
लोग डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं। उन्हे अक्सर नकद का उपयोग
करना पड़ता है। क्योंकि कई व्यवसायों के भुगतान के लिए नकदी ही चलती है।
नोट बदलने की इस योजना ने अर्थव्यवस्था को उथल-पुथल में डाल दिया है।
बैंकों में पुराने नोटो को बदलने के लिए मजबूर लोग लम्बी कतारों में खड़े
हैं। एक व्यक्ति ने टाइम्स को बताया कि एक बैंक ने उसे नोट बदलने के लिए
मना कर दिया क्योकी उसके पास सरकार द्वारा जारी पहचान कार्ड नहीं था जो
पुराने नोट जमा करने के लिए आवश्यक है । उसे उम्मीद थी कि नोट बदलवाने के
इंतजार में लगे उसके परिवार को कोई चैरिटी खाना खिलाएगी।
ब्लूमबर्ग- मोदी की बड़ी गलती
शुरु में ये पीएम मोदी का मास्टर स्ट्रोक लगा था लेकिन बाद में ये एक बड़ी गलती जैसा लगने लगा।
मोदी के हाल के भाषण नोटबंदी के विषय पर एकदम बेतुके रहे। एक ओर वो
नोटबैन की तकलीफ़ पर हँसते हुए दिखे और दूसरी और भारत पर अपने “बलिदान” के
लिए रोते दिखे और चेतावनी दी कि कुछ लोग अपनी लूट की रक्षा के लिए उनकी
हत्या कर सकते है।
एक सप्ताह में क्या बदल गया है? खैर, एक के लिए, यह स्पष्ट हो गया है कि
सरकार इसकी योजना बनाने में जल्दबाज़ी में सवार थी। अब जब कि भारत की
मुद्रा का 86 प्रतिशत वैध नहीं है, केंद्रीय बैंक ने नोट मुद्रित करने के
लिए काफी संघर्ष किया है।
वाशिंगटन पोस्ट
एक शोध रिपोर्ट में बैंकिंग की दिग्गज कंपनी एचएसबीसी ने भविष्यवाणी की
है कि उपभोक्ता वस्तुओं के आयात गिर जाएेंगे लेकिन सोने की मांग से भरपाई
हो सकती है। क्योंकि अस्थिर भारतीय अपने धन को स्टोर करने के तरीके देखते
हैं।
नोटबंदी का प्रभाव दो साल के लिए रह सकता है। मंदी के दौर में देश चला
रहे हैं और भारतीयों को प्रेरित कर रहे है यूरो या अमरीकी डॉलर के रूप में
मुद्राओं में धन रखें।
Source : http://www.jantakareporter.com
No comments:
Post a Comment